महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का सियासी तापमान चरम पर है. मतदान खत्म हो चुका है और अब सभी की निगाहें 23 तारीख को आने वाले नतीजों पर टिकी हैं. महाराष्ट्र की जनता ने किसके पक्ष में फैसला दिया है, यह जानने के लिए सभी राजनीतिक दल अपनी गणना करने और अनुमान लगाने में जुट गए हैं. इस बार चुनावी दंगल में मुख्य रूप से महायुति (भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना-शिंदे गुट, और एनसीपी-अजित पवार गुट) और महाविकास आघाड़ी (शिवसेना-उद्धव गुट, एनसीपी-शरद पवार गुट, और कांग्रेस) आमने-सामने रहे हैं.
महाराष्ट्र में बन रहे हैं चार सीन
अब वोटिंग हो चुकी है. किस्मत बैलेट बॉक्स में बंद हो चुकी है और ये पिटारा तो अब 23 नवंबर को ही खुलेगा, लेकिन इससे पहले महाराष्ट्र में पूरे चुनाव काल के दौरान जिस तरह का माहौल बना और जो-जो फैक्ट्स सामने आए हैं, उनसे चार सिनेरियो बन रहे हैं. ये सिनेरियो बन रहे हैं राजनीतिक दलों के दावों से, उनके वोट मांगने के दौरान किए गए वादों से, लुभावनी योजनाओं से और जनता के मुद्दों से. इन सभी आधार पर पर उपजी संभावनाओं पर डालते हैं एक नजर-
महायुति ने किया ये चुनावी दावा
महायुति ने दावा किया है कि उसे लाडली बहन योजना से बढ़त मिली है. इस चुनाव में महायुति ने जनता के सामने तीन बड़े मुद्दे सामने रखे. महायुति ने लाडली बहन योजना को अपनी ताकत के तौर चुनाव में भुनाया है. इस योजना के तहत महिलाओं के खातों में सीधे पैसे डालने की घोषणा बड़ी बात के तौर पर सामने आई है.
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इसके अलावा महायुति ने अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत बताया और मतभेद के दावों को खारिज किया. चुनाव में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की लीडरशिप भी महायुति की बड़ी ताकत बनकर उभरी है. ऐसा कई पत्रकार भी दावा करते हैं कि, एकनाथ शिंदे ने अपनी छवि को मजबूती दी है. उनका काम लोगों के बीच सराहा गया, और उनके नेतृत्व पर शायद ही किसी ने सवाल उठाया. अजित पवार, जिन्हें अक्सर गंभीर छवि वाले नेता के रूप में देखा जाता है, ने इस बार अपनी छवि में नरमी लाने की कोशिश की. गुलाबी रंग का इस्तेमाल और उनकी बदली हुई बॉडी लैंग्वेज इसकी गवाही देती है.
महाविकास आघाड़ी:
अब महाविकास आघाड़ी पर नजर डालते हैं, जिसने सहानुभूति लेने की कोशिश की और स्थानीय मुद्दों का सहारा लिया. दूसरी तरफ, महाविकास अघाड़ी सहानुभूति वोट और स्थानीय मुद्दों को भुनाने की कोशिश में है. उद्धव ठाकरे और शरद पवार गुट ने बीजेपी पर उनके दलों को तोड़ने का आरोप लगाकर सहानुभूति वोट मांगा. वहीं, बढ़ती महंगाई और मराठा आरक्षण आंदोलन जैसे स्थानीय मुद्दों को भी खास तौर पर चुनावी मुद्दा बनाकर सामने रखा.
आघाड़ी ने चुनावी रणनीति के तहत ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकें और, विश्लेषकों का मानना है कि महाविकास आघाड़ी को सहानुभूति वोट के साथ-साथ शहरी और ग्रामीण इलाकों में महंगाई और किसानों के मुद्दों पर फायदा मिल सकता है.
त्रिशंकु विधानसभा की संभावना
अगर दोनों गठबंधन स्पष्ट बहुमत पाने में असफल रहते हैं, तो महाराष्ट्र में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन सकती है. इस स्थिति में छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के पास सत्ता की चाबी होगी. वंचित बहुजन आघाड़ी, एआईएमआईएम, और एमएनएस जैसे दल छोटे लेकिन प्रभावी खिलाड़ी बन सकते हैं. निर्दलीय उम्मीदवार, जिनकी संख्या 30 से अधिक हो सकती है, सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे.
मोदी-शाह फैक्टर और लोकसभा का असर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी हर चुनाव में अहम भूमिका निभाती है. महाराष्ट्र में भी उनकी चुनावी मशीनरी का असर देखा गया. विश्लेषकों का कहना है कि अगर महायुति जीतती है, तो इसका श्रेय मोदी-शाह की बदली हुई रणनीति और संगठन के मजबूत नेटवर्क को जाएगा. हालांकि, बीजेपी के कुछ नारे, जैसे “400 पार” और “बटेंगे तो कटेंगे”, विपक्ष के लिए हथियार बन गए. विपक्ष ने इन नारों को संविधान बदलने और विभाजनकारी एजेंडे के रूप में प्रचारित किया, जो जनता के बीच चर्चा का विषय बन गए.
स्थानीय मुद्दों की अहमियत
इस बार चुनाव में स्थानीय मुद्दे, जैसे किसानों की समस्याएं, मराठा आरक्षण आंदोलन, और बढ़ती महंगाई, प्रमुख बने. महाविकास आघाड़ी ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया. किसानों का असंतोष, राज्य सरकार की ओर से चुनाव से ठीक पहले किसानों के लिए राहत उपायों की घोषणा को विपक्ष ने चुनावी स्टंट करार दिया गया. विपक्ष ने सरकार को महंगाई पर घेरते हुए इसे चुनावी एजेंडे का हिस्सा बनाया. इसके साथ ही, चुनावी माहौल में आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चरम पर रहा. महाविकास आघाड़ी ने लाडली बहन योजना को महिला मतदाताओं को लुभाने का प्रयास बताया और इसे अपर्याप्त करार दिया. वहीं, महायुति ने विपक्ष पर महिलाओं के सम्मान को लेकर सवाल खड़े किए हैं.
निर्दलीयों की भूमिका हो सकती है महत्वपूर्ण
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस चुनाव में कोई भी गठबंधन स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने की स्थिति में नहीं दिख रहा है. अगर त्रिशंकु विधानसभा बनती है, तो छोटे दलों और निर्दलीयों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. 23 तारीख को आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि महाराष्ट्र की सियासत में कौन सा गठबंधन अपना परचम लहराएगा. लेकिन एक बात तय है, यह चुनाव केवल गठबंधनों की ताकत नहीं, बल्कि स्थानीय मुद्दों और नेताओं की छवि पर भी निर्भर करेगा.
सीन 1: कुल सीट- 288
महायुति को बहुमत- 145 पार (अगर महायुति की सरकार बनी)
वजह- लाडली बहन मुद्दा बना गेमचेंजर, शहरी इलाकों में NDA का परचम लहाराना, NDA दलों का आपसी तालमेल, मराठवाड़ा और विदर्भ में नुकसान की भरपाई
सीन 2: महाविकास अघाड़ी को बहुमत-145 पार (अगर महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी)
वजहः लोकसभा का रुख विधानसभा में भी दिखा, उद्धव और शरद पवार गुटों को सहानुभूति वोट, मतदाताओं ने जोड़-तोड़ की राजनीति को नकारा, अघाड़ी का तालमेल महायुति के वोट को छीनने में रहा कामयाब, लाडली बहन पर हावी हुई बढ़ती महंगाई, महायुति को मराठा आरक्षण आंदोलन से नुकसान
सीन 3: त्रिशंकु विधानसभा
वजह- दोनों गठबंधन अकेले दम पर कामयाब नहीं, 30+ निर्दलीय और छोटे दलों के हाथ में सत्ता की चाबी, VBA, MNS, AIMIM की सीटों ने गठबंधन को उलझाया, NDA को शहरी और MVA को ग्रामीण इलाकों में कामयाबी, बागियों ने बढ़ाई दोनों दलों की परेशानी,
सीन-4: उलझे हुए नतीजे, दोनों गठबंधन
वजह- निर्दलीय उम्मीदवार और छोटे दल नतीजों के बाद बनेंगे अहम किरदार, VBA और AIMIM जैसी पार्टियों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया, महाराष्ट्र में सरकार बनाने में फिर से 2019 वाली उलझी स्थिति, राज्य में राष्ट्रपति शासन की संभावना.