Exit poll: महाराष्ट्र-झारखंड और यूपी उपचुनाव में NDA को बंपर बढ़त का आंकलन, क्या ये 5 कारण हैं जिम्मेदार? । Opinion – exit polls on Maharashtra Jharkhand assembly election and UP bypoll Bumper lead bJP OPNS2

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महाराष्ट्र-झारखंड और उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनावों के लिए वोट पड़ चुके हैं. 23 नवंबर को मतगणना होनी है. पर वोटिंग के बाद आने वाले एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र ही नहीं झारखंड में भी बड़ी बढ़त मिलती दिख रही है. यही नहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनावों में भी बीजेपी अधिक सीटें लेती हुई दिख रही है. लोकसभा चुनाव और फिर हरियाणा के चौंकाने वाले नतीजों ने एग्जिट पोल को सवालों के घेरे में ला दिया है. ऐसे में इसे सिर्फ अनुमान ही कह सकते हैं. पर एग्जिट पोल को पूरा सच नहीं तो कम से कम 50 से 60 प्रतिशत तक मिली सफलता के आधार पर एक वैज्ञानिक प्रक्रिया तो मान ही सकते हैं. लोकसभा चुनावों के एग्जिट पोल में 400 सीटों का अनुमान तो पूरा नहीं हुआ पर सरकार तो एनडीए की ही बनी. इसी तरह हरिय़ाणा विधानसभा चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल में कांग्रेस के सरकार बनने का अनुमान था पर परिणाम में कांग्रेस का वोट प्रतिशत तो बीजेपी के लगभग बराबर ही आया. कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि हम एग्जिट पोल को पूरी तरह खारिज भी नहीं कर सकते हैं. महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल में विपक्ष की जो दुर्गति होती दिख रही है उसके पीछे क्या ये कारण जिम्मेदार हैं?

1- आपस में लड़ता-बिखरता विपक्ष

लोकसभा चुनावों के समय देश की जनता को ऐसा लगा था कि विपक्ष एक होकर एनडीए के खिलाफ एक सशक्त विकल्प दे सकता है. पर ऐसा नहीं हुआ. ममता बनर्जी हों या अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव हो या राहुल गांधी सभी को आपस में ही लड़ते और एक दूसरे के लिए गड्ढा खोदते हुए लोगों ने देखा. यहां तक कि महाराष्ट्र और झारखंड में भी अंतिम समय तक विपक्ष सीटों के बंटवारे के लिए एक दूसरे के साथ कुत्ते बिल्लियों वाली लड़ाई लड़ रहा था. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे खुद को सीएम पद का दावेदार मान रहे थे तो कांग्रेस भी जरा उन्हें भाव देने को तैयार नहीं थी. अंतिम दिन तक एमवीए में यह तय नहीं था कि किस सीट से किस पार्टी के प्रत्याशी खड़ें होंगे. जनता को कैजुवल तरीके से विपक्ष ने लिया. विपक्ष केवल आंकड़ों की बाजीगरी देख रही थी. मुस्लिम-मराठा और दलित तो हमें वोट देंगे ही . हम चाहे किसी को प्रत्याशी बना दे. हालांकि यही हाल महायुति का भी था. पर एमवीए के मुकाबले में उनके यहां अव्यवस्था कम थी. झारखंड में भी विपक्ष का यही हाल था.

2-कांग्रेस का एंटी-हिंदू वामपंथी रुख

भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रचार तंत्र से यह साबित कर दिया कि कांग्रेस एंटी हिंदू पार्टी है. इसके साथ ही इस बीच राहुल गांधी ने लगातार ऐसी बातें कीं जैसी पहले वामपंथी लोग करते थे. जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात हो या पूंजीपतियों के खिलाफ लगातार बयानबाजी ने उन्हें विकासरोधी बना दिया. हालांकि राहुल गांधी ने बीच में एक बार खुद को विकास रोधी न होने के पीछे तर्क भी दिए थे. पर जनता का नजरिया इतनी जल्दी नहीं बदलता. कांग्रेस पार्टी ने 2014 में बनी एंथनी रिपोर्ट की फाइलों को धूल जमने के लिए छोड़ दिया. एंथनी रिपोर्ट में ये बात क्लीयर की गई थी कि पार्टी के हिंदू विरोधी छवि से चुनावों में नुकसान हो रहा है. 

3-राहुल गांधी का जाति वाली राजनीति पर जोर

राहुल गांधी का जाति जनगणना की मांग और आरक्षण की सीमा बढ़ाने का वादा भी उल्टा पड़ता दिख रहा है. हरियाणा में मिली असफलता के बाद भी राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना की बात करते रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को बार बार यह समझाया कि जातियों की गणना किस तरह ओबीसी और दलित आरक्षण के लिए खतरा बन जाएगी. शायद जनता इस बात को समझ गई . 

4-बीजेपी की नई रणनीति

भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं कराया. यही रणनीति महाराष्ट्र और झारखंड में भी पार्टी ने किया. लोकल नेताओं को प्रचार में आगे रखा गया. इस बार महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं देवेंद्र फडणवीस ने की . लोकल मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया. इसका फायदा महाराष्ट्र और झारखंड में मिलता दिख रहा है.

5- संघ का साथ कमाल कर गया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस बार महाराष्ट और झारखंड विधानसभा चुनावों में ताल ठोंककर लगी हुई थी. संघ के कार्यकर्ता भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ वाले नारे को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. संघ का लोक जागरण मंच घर घर पहुंचक पंफलेट बांट रहा था. इनमें जनता से अपील की जा रही थी कि लोकसभा चुनावों के परिणामों से सीख लें और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन को वोट दें. पंफलेट में लोगों को संविधान, आरक्षण और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बारे में फैलाई जा रही अफवाहों से सावधान रहने की सलाह दी जा रही थी. साथ ही भूमि जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, पत्थरबाजी और दंगे आदि के बारे में बताया जा रहा था.

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