राजनीति में कोई खुद को दक्षिणपंथी कहता है, कोई खुद को वामपंथी बताता है, कोई मध्यमार्गी (न दक्षिणपंथी न वामपंथी) की विचारधारा दिखाता है. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या धीरे-धीरे चुनाव विचारधारा आधारित न होकर सिर्फ मुफ्तवादी सोच पर ही हुआ करेंगे? दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है, इसके लिए सभी राजनीतिक दल जमकर प्रचार कर रहे हैं. लेकिन सभी के प्रचार में मुफ्त के वादों की भरमार है.
AAP, बीजेपी और कांग्रेस दिल्ली में अब तक करीब 21 हजार करोड़ के फ्रीबीज का ऐलान कर चुकी हैं. दिल्ली का बजट 78 हजार 800 करोड़ रुपये है और अगले कुछ दिन में सिर्फ फ्री के वादों का बजट ही 25 हजार करोड़ के पार जा सकता है. ऐसा लगता है कि चुनाव ना होकर वोटों की बोली लग रही हो. पहले पार्टियां घोषणा पत्र जारी करके जनता के सामने विकास का अपना विजन रखती थीं और सारे वादे उसी में कर देती थीं.
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दिल्ली में स्टूडेंट्स के लिए मुफ्त वाले वादे
लेकिन दिल्ली चुनाव में सभी दल किस्तों में जनता से वादे कर रहे हैं. एक दूसरे के मुफ्त के वादों की रेंज देखकर, अपना वादा बढ़ा चढ़ा कर करते हैं. जैसे अरविंद केजरीवाल हर दिन 12 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और किसी नई घोषणा का ऐलान करते हैं. वैसे ही बीजेपी दिल्ली में अपना संकल्प पत्र दो हिस्सों में लेकर आई है, पार्ट-1 और पार्ट-2. अरविंद केजरीवाल ने स्टूडेंट्स के लिए फ्री बस यात्रा का वादा किया, तो कांग्रेस ने बेरोजगार युवाओं 8500 रुपये प्रति महीने का एप्रेंटेसशिप स्टाइपेंड देने का वादा कर दिया. अब बीजेपी ने सरकारी शिक्षण संस्थाओं में जरूरतमंद स्टूडेंट्स के लिए केजी से पीजी तक की पढ़ाई मुफ्त कराने का ऐलान किया है.
साथ ही भाजपा ने प्रतियोगी छात्रों को 15 हजार रुपये की सीधी मदद, 2 बार परीक्षा देने जाने पर मुफ्त बस यात्रा और दो परीक्षाओं के फॉर्म भरने का पैसा देने का वादा किया है. इस बीच अरविंद केजरीवाल दिल्ली के धोबी समुदाय के लिए नया वादा लेकर आए हैं. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर दिल्ली में धोबी समाज कल्याण बोर्ड का गठन करेंगे. उन्होंने धोबी समाज को पानी-बिजली घरेलू दर पर देने और जहां वे कपड़े प्रेस करने की ठेहड़ी लगाते हैं उसे नियमित करने का वादा किया. वहीं बीजेपी ने घरों में हाउसहेल्प का काम करने वालों की मदद के लिए वेलफेयर बोर्ड बनाने के साथ ही ऑटो वालों के लिए 10 लाख का जीवन बीमा और 5 लाख रुपये तक का दुर्घटना बीमा, बच्चों को छात्रवृत्ति देने का वादा किया. इसके अलावा बीजेपी ने गर्भवती महिलाओं को 21 हजार रुपये की मदद और छह महीने की पेड मैटर्निटी लीव का वादा किया है.
दिल्ली में सब्सिडी बजट 11000 करोड़ रुपये पहुंचा
दिल्ली में चुनाव प्रचार थमने में जब चंद दिन ही बचे हैं, लेकिन राजनीतिक दलों के वादों की लड़ी नहीं थम रही. दिल्ली में फ्री के वादों पर सभी दलों का इतना जोर क्यों है? क्योंकि दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां आबादी कम है. यहां मुफ्त योजनाएं लागू करना और इसके जरिए लोगों को लुभाना आसान है. तभी तो आम आदमी पार्टी जो वादा दिल्ली में करती है, पंजाब में वह अधूरा रह जाता है, क्योंकि पंजाब में आबादी ज्यादा है, तो खर्च ज्यादा है. इसी तरह बीजेपी जो वादा दिल्ली में कर रही है, उसे यूपी में लागू नहीं करती, क्योंकि वहां आबादी ज्याद तो खर्च ज्यादा. वैसे फ्रीबीज के चक्कर में खर्च का बोझ दिल्ली के खजाने पर भी कम नहीं पड़ता है. इसे उदाहरण से समझें- दिल्ली में 2014-15 तक सब्सिडी पर 1155 करोड़ रुपये ही खर्च हो रहे थे. फिर आम आदमी पार्टी की सरकार बनी और फ्री योजनाएं लागू हुईं तो 2015-16 में सब्सिडी बढ़कर 3018 करोड़ रुपए हो गया.
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दिल्ली में सब्सिडी बजट 2024-25 में 11000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. 10 साल में जनता से किए फ्री के वादे पूरा करने में सब्सिडी 607% तक बढ़ चुकी है. अब जैसे मुफ्त बिजली का खर्च देखिए, 2014-15 में बिजली सब्सिडी का खर्च 292 करोड़ था. आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद यह बढ़कर 1443 करोड़ रुपये हो गया और 2024-25 में यह खर्च 3600 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. यानी 10 सालों में 1133% की बढ़ोतरी. जैसे-जैसे ज्यादा लोगों को फायदा मिल रहा है, वैसे-वैसे सब्सिडी का खर्च भी बढ़ रहा है. अभी दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ है और 400 यूनिट तक हाफ है. कांग्रेस ने 300 यूनिट तक बिजली बिल माफ करने का वादा किया है. अगर 300 यूनिट वाला वादा पूरा करना पड़ा तो सब्सिडी पर 1000 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे. यानी बिजली सब्सिडी बजट 4600 करोड़ रुपये का हो जाएगा.
दिल्ली जल बोर्ड का सब्सिडी बजट 500 करोड़ रुपये
दिल्ली में अभी आम आदमी पार्टी की सरकार में 20 हजार लीटर तक पानी मुफ्त है, भले ही इसकी गुणवत्ता बहुत खराब हो. बीजेपी ने वादा किया है कि वह बिजली और पानी की योजना को आगे भी जारी रखेगी. लेकिन दिल्ली जल बोर्ड के माध्यम से पानी की सब्सिडी पर भी गौर करें. 2014-15 में यह खर्च ₹21 करोड़ था, जो 2015-16 में 190 करोड़ रुपए तक पहुंचा, अब बढ़कर 500 करोड़ रुपये हो गया है. यानी 10 वर्षों में 2300% की बढ़ोतरी. दिल्ली में 2020 के चुनाव से पहले केजरीवाल सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा शुरू की थी. इससे भी सब्सिडी का खर्च बढ़ा है. 2019-20 में डीटीसी की सब्सिडी 44 करोड़ रुपये के आसपास थी, जो अब बढ़कर 200 करोड़ हो गया है, यानी पांच साल में 349% की बढ़ोतरी.ऐसे ही सब्सिडी का खर्च बढ़ता रहा, तो क्या सरकार की कमाई यानी राजस्व खर्च से कम नहीं हो जाएगी? सोचिए तब क्या होगा? तब जनता को जरूरी सुविधाएं कैसे मिल पाएंगी?
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हालात ये हैं कि जिस दिल्ली में अभी सब्सिडी पर सरकार को बजट से 11000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, वहां अबकी तीनों दलों ने महिलाओं को ही कैश देने वाले ऐसे वादे कर दिए हैं, जिसका अकेले का खर्च 11000 करोड़ के पार तक जा सकता है. दिल्ली के वित्त विभाग का ही अनुमान है कि अगर 1000 रुपये हर महीने दिल्ली में महिलओं को मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत दिया जाए, तो इसके लिए सालाना 4560 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. जबकि अरविंद केजरीवाल ने अब 2100 रुपये महीने देने का वादा किया है, तो अनुमान है कि इससे सालाना 9500 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से खर्च करना पड़ेगा. वहीं बीजेपी- कांग्रेस ने तो 2500 रुपये हर महीने महिलाओं को देने का वादा किया है, जिससे सरकारी खजाने से सालाना 11400 करोड़ रुपये देने होंगे.
दिल्ली में सिर्फ फ्रीबीज पर खर्च हो जाएंगे 21000 करोड़?
दिल्ली का बजट अभी 78 हजार 800 करोड़ रुपये का है. इस हिसाब से राजनीतिक दलों द्वारा किए गए अब तक के वादे से 21 हजार करोड़ रुपये केवल मुफ्त की योजनाओं को पूुरा करने में जाएंगे, बाकी 45 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा पैसा वेतन-पेंशन औऱ दूसरी मदों में चला जाएगा, तो सोचिए सड़क, पुल, यमुना की सफाई, नाले, सीवेज, प्रदूषण रोकथाम, इत्यादि पर खर्च करने के लिए पैसे कहां से आएंगे? दिल्ली में राजनीतिक दल सिर्फ आर्थिक मदद के नाम पर महिलाओं का वोट लेना चाहते हैं. लेकिन जब बात महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले राजनीति में समान भागीदारी देने की आती है, तो सभी दल फिसड्डी नजर आते हैं.
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आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 9 पर महिला उम्मीदवार उतारे हैं, यानी 13% भागीदारी दी है. कांग्रेस ने 70 में से सिर्फ 7 टिकट महिलाओं को दिए हैं, यानी 10% भागीदारी. बीजेपी ने 68 सीटों में से 9 पर महिला उम्मीदवार उतारे हैं यानी 13% से कुछ ज्यादा भागीदारी. AAP, कांग्रेस या फिर बीजेपी, तीनों दल संसद में महिला आरक्षण बिल का समर्थन करके उसे एतिहासिक बताते हैं, लेकिन महिलाओं को सामर्थ्यवान केवल कैश योजना के दम पर बनाने की सोचते हैं. तभी तो दिल्ली में किसी भी पार्टी ने 33 फीसदी टिकट महिलाओं को नहीं दिए हैं.