CRPF Gunned Down Militants in Manipur – मणिपुर में 11 उग्रवादियों के मारे जाने के बाद तनाव, कुकी संगठन ने बुलाया बंद, जिरीबाम जिले में कर्फ्यू – Tension after killing of 11 militants in Manipur Kuki organization calls bandh curfew in Jiribam district ntc

Facebook
Twitter
LinkedIn
Pinterest
Pocket
WhatsApp

मणिपुर में पिछले साल 3 मई से शुरू हुआ हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. बीते चार दिनों में राज्य में हिंसा की 8 अलग-अलग वारदातें सामने आ चुकी हैं. ताजा मामला 11 नवंबर का है, जब जिरीबाम जिले में बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन और उसके बगल में स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हथियारबंद कुकी उग्रवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की. उन्होंने बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन से 100 मीटर की दूरी पर स्थित जकुराडोर करोंग बाजार में और उसके आसपास कई दुकानों और घरों को भी आग लगा दी. सीआरपीएफ की जवाबी कार्रवाई में 11 उग्रवादी मारे गए. इस मुठभेड़ के दौरान सीआरपीएफ के दो जवान भी घायल हो गए और उनमें से एक की हालत गंभीर बताई जा रही है.

इन संदिग्ध उग्रवादियों के मारे जाने के बाद कुकी-जो काउंसिल ने मंगलवार सुबह 5 बजे से शाम 6 बजे तक राज्य के पहाड़ी इलाकों में पूर्ण बंद का आह्वान किया है. मणिपुर पुलिस ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, ‘आज, 11 नवंबर, 2024 को जिरीबाम जिले में जकुराडोर और बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन के पास स्थित सीआरपीएफ पोस्ट पर दोपहर करीब 3 बजे, सशस्त्र उग्रवादियों ने हमला किया. सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई की जिसमें 11 उग्रवादी मारे गए. उग्रवादियों के साथ इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ कांस्टेबल संजीव कुमार को गोली लग गई. उन्हें असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया और उनका इलाज चल रहा है.’

CRPF ने 11 उग्रवादियों को किया ढेर

हमले का सीआरपीएफ और पुलिस ने जमकर जवाब दिया और 40-45 मिनट की भारी गोलीबारी के बाद स्थिति पर काबू पा लिया गया. गोलीबारी बंद होने के बाद क्षेत्र की तलाशी ली गई तो हथियार और गोला-बारूद (3 एके, 4 एसएलआर, 2 इंसास, 01 आरपीजी, पंप एक्शन गन, बीपी हेलमेट और मैगजीन) के साथ सशस्त्र आतंकवादियों के 11 शव बरामद किए गए. इस हमले के संबंध में एफआईआर दर्ज की गई है और जांच की जा रही है. मणिपुर पुलिस ने कहा कि उग्रवादियों के खात्मे के लिए अभियान जारी है. असम राइफल्स, सीआरपीएफ और सिविल पुलिस की टीमों को घटनास्थल पर भेजा गया है.

कुकी-जो काउंसिल ने एक बयान में कहा, ‘जिरीबाम में हुई दुखद घटना में हमने सीआरपीएफ के हाथों अपने 11 कुकी-जो ग्राम स्वयंसेवकों को खो दिया, जिनकी बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई. कुकी-जो काउंसिल ने पीड़ितों के सम्मान में और हमारे सामूहिक दुख और एकजुटता को व्यक्त करने के लिए 12 नवंबर को सुबह 5:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक पूर्ण बंद की घोषणा की है. हमारे बहुमूल्य ग्राम स्वयंसेवकों की हत्या न केवल उनके परिवारों के लिए, बल्कि पूरे कुकी-जो समुदाय के लिए एक विनाशकारी झटका है. कुकी-जो शांति, न्याय और सुरक्षा के लिए इस संघर्ष में एकजुट हैं. हम आज हुई हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और अपराधियों को न्याय के कठघरे में लाने के लिए तत्काल और गहन जांच की मांग करते हैं.’ 

जि​रीबाम में अगले आदेश तक कर्फ्यू

अधिकारियों ने कहा, ‘जिस बोराबेकरा पुलिस स्टेशन पर उग्रवादियों ने हमला किया, उसके परिसर में एक राहत शिविर भी है, और इस घटना के बाद वहां रहने वाले पांच लोग लापता हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि उग्रवादियों ने इन नागरिकों का अपहरण कर लिया या हमला शुरू होने के बाद वे छिप गए थे. उनकी तलाश की जा रही है. कुछ असामाजिक तत्वों की गैरकानूनी गतिविधियों के कारण क्षेत्र में शांति और कानून-व्यवस्था बाधित होने की आशंका है और मानव जीवन और संपत्तियों को गंभीर खतरा है. इसलिए पूरे इलाके में बीएनएसएस की धारा 163 के तहत अगले आदेश तक कर्फ्यू लागू रहेगा.’  

बोरोबेकरा सब-डिवीजन में जून के बाद से हिंसा की कई घटनाएं देखी गई हैं. यह जिले के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. पिछले हफ्ते, जैरोन हमार गांव पर सशस्त्र उग्रवादियों के हमले में एक 31 वर्षीय महिला की मौत हो गई थी. पुलिस के मुताबिक, हमले में कम से कम छह घर जलकर राख हो गए. इंफाल घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय और पहाड़ियों पर रहने वाले कुकी-जो समुदाय के बीच पिछले साल 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों लोग बेघर हुए हैं. जिरीबाम इस जातीय हिंसा से काफी हद तक अछूता था. लेकिन इस साल जून में खेत में एक किसान का क्षत-विक्षत शव पाए जाने के बाद यहां भी हिंसा देखी गई. आगजनी की घटनाओं के कारण हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी. जुलाई के मध्य में गश्त के दौरान आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर किये गये हमले में सीआरपीएफ का एक जवान भी मारा गया था.

मणिपुर में कैसे हुई हिंसा की शुरुआत?

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत पिछले साल 3 मई से तब हुई, जब मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ कुकी-जो जनजाति समुदाय के प्रदर्शन के दौरान आगजनी और तोड़फोड़ की गई. दरअसल, मैतेई समुदाय ने इस मांग के साथ मणिपुर हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी कि उन्हें जनजाति का दर्जा दिया जाए. मैतेई समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था. उससे पहले उन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ था. मणिपुर हाई कोई ने याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने पर विचार किया जाए.

कुकी-जो समुदाय मैतेई को जनजाति का दर्जा देने के विरोध में हैं. इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीटें पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं. ऐसे में मैतेई को जनजाति का दर्जा मिलने से आरक्षण में कुकी-जो समुदाय की हिस्सेदारी कम हो जाएगी. बहुसंख्यक मैतेई आबादी इंफाल घाटी और मणिपुर के मैदानी क्षेत्रों में रहती है, जबकि कुकी-जो समुदाय की ज्यादातर आबादी पहाड़ी इलाकों में रहती है. मैतेई हिंदू हैं, जबकि कुकी-जो ईसाई धर्म को मानते हैं. मणिपुर में इन दोनों समुदायों के बीच हिंसा का दौर डेढ़ साल से जारी है. इस दौरान 237 मौतें हुई हैं, 1500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. 

वहीं, 60 हजार लोग अपना घर-बार छोड़कर राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं. मणिपुर में पिछले डेढ़ वर्ष में करीब 11 हजार एफआईआर दर्ज हुई हैं और 500 गिरफ्तारियां की गई हैं. मणिपुर राज्य पहाड़ी और मैदानी दो हिस्सों में बंट चुका है. मैदानी जिलों में मैतेई और पहाड़ी जिलों में कुकी रहते हैं. दोनों समुदायों के बीच इस तरह की अदावत चल रही है कि यदि मैदानी इलाके से कोई मैतेई पहाड़ी इलाके और पहाड़ी इलाके से कोई कुकी मैदानी इलाके में आ गया तो ​उसका जिंदा वापस जाना शायद मुमकिन न हो.

Source link

Facebook
Twitter
LinkedIn
Pinterest
Pocket
WhatsApp

Never miss any important news. Subscribe to our newsletter.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *