डोनाल्ड ट्रंप जनवरी 2025 में व्हाइट हाउस में वापसी करने वाले हैं, लेकिन वह इससे पहले ही सुर्खियों में बने हुए हैं. अपनी आक्रामक व्यापार नीति को लेकर ट्रंप एक बार फिर चर्चा में हैं. ब्रिक्स देशों,पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी, जिसमें भारत भी शामिल है, एक नई चिंता बन कर उभरी है. ट्रंप की यह धमकी रूस के कजान में अक्टूबर में हुई ब्रिक्स देशों की बैठक के बाद आई है, जहां उन्होंने डॉलर से इतर लेन-देन बढ़ाने पर चर्चा की थी.
अमेरिका के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध शेयर करने वाला भारत ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों को लेकर सतर्क है. ट्रंप का कहना है कि उनकी नीतियां अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए हैं. हालांकि भारत के लिए, यह चिंता का विषय है, क्योंकि उसकी निर्यात सूची में फार्मास्युटिकल्स, आईटी सर्विस और कपड़ा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं. अगर ट्रंप अपनी धमकी पर अमल करते हैं, तो इससे भारतीय निर्यातकों को अधिक लागत का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके उत्पाद अमेरिकी बाजार में कॉम्प्टीशन से बाहर हो सकते हैं.
वहीं, भारत ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की कोशिश की है, लेकिन हाल ही में अमेरिका ने भारत का प्रमुख व्यापारिक साझीदार बनकर 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार को 120 अरब डॉलर तक पहुंचाया है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जाहिर की असहमति
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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स देशों की साझा मुद्रा को लेकर अपनी असहमति जाहिर की है. उन्होंने कहा कि यह संभावना कम है कि ब्रिक्स देशों के सदस्य एक सामान्य मुद्रा अपनाएं, क्योंकि इसके लिए उनके मौद्रिक, आर्थिक और राजनीतिक नीतियों में गहरी समानता की जरूरत होती है. उन्होंने यह भी कहा कि कई देश अपनी-अपनी मुद्रा का ही उपयोग करना चाहेंगे, क्योंकि यह ज्यादा सुविधाजनक और सस्ता हो सकता है. ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हैं..
ट्रंप की धमकी और भारत का डॉलर पर निर्भरता
शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अगर ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर की जगह अपनी साझा मुद्रा अपनाने की कोशिश करेंगे तो उन्हें “अमेरिका से अलविदा कहना होगा” और “दूसरे किसी मूर्ख को ढूंढना होगा.” ट्रंप ने कहा, “ब्रिक्स देशों का यह प्रयास डॉलर को चुनौती देने का है, लेकिन अब हम इसे चुपचाप नहीं देख सकते. अगर ये देश अपनी मुद्रा बनाने की कोशिश करेंगे, तो उन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाएंगे और वे अमेरिकी बाजार में व्यापार नहीं कर पाएंगे.”
ट्रंप का यह बयान इसलिए अहम है क्योंकि अमेरिकी डॉलर आज भी दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली मुद्रा है और इसका दबदबा कई दशकों से कायम है. हालांकि, ब्रिक्स देशों और कुछ अन्य विकासशील देशों ने अमेरिकी डॉलर के दबदबे को चुनौती देने की बात की है और वे अपनी मुद्रा का विकास करना चाहते हैं.
भारत है ज्यादा सतर्क
भारत इस मामले में ज्यादा सतर्क है. भारत का मानना है कि एक ब्रिक्स मुद्रा अपनाने से उसकी आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. इसके अलावा, भारत को चीन के बढ़ते प्रभाव से भी चिंता है, क्योंकि चीन अपनी आर्थिक और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए ब्रिक्स का इस्तेमाल कर सकता है. भारत की नीति यह है कि वह अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने वाली मुद्रा के पक्ष में खड़ा होकर अपने पश्चिमी साझेदारों के साथ व्यापारिक संबंधों को खतरे में नहीं डालना चाहता है.
Report: प्रतीक चक्रबर्ती