स्वास्तिक के निशान… क्या है असली पहचान? शिव मंदिर के दावे के बीच अजमेर दरगाह से ग्राउंड रिपोर्ट – ground report from Ajmer Khwaja Dargah Swastik marks what is the real identity ntc

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राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका कोर्ट ने स्वीकार की तो सवालों का नया सिलसिला शुरू हो गया. क्या केवल एक किताब के हवाले से ही ये दावा किया जा रहा है या मंदिर वाले इस बड़े दावे के पीछे कोई और भी वजह है? आखिर दरगाह परिसर में वो कैसे प्रतीक और चिह्न हैं, जिन्हें हिंदू और जैन मंदिरों जैसा बताया जा रहा है? कोर्ट में दाखिल इस याचिका पर अजमेर पहुंच रहे जायरीनों का क्या कहना है और याचिका के खिलाफ दरगाह कमेटी की क्या तैयारी है, इसे समझने के लिए आजतक की टीम अजमेर पहुंची और दरगाह को लेकर किए गए हर एक दावे की पड़ताल की.

दरअसल, ख्वाजा साहब की दरगाह के बुलंद दरवाजा को लेकर भी विवाद है. मजार के नीचे शिवलिंग के अलावा ये कहा जा रहा है कि बुलंद दरवाजा की छतरियां को देखें तो इनको लेकर दावा है कि ये हिंदू और जैन मंदिर के अवषेश हैं. कलश भी है. यही सबसे पहला दरवाजा है, जिसे महमूद खिलजी ने बनाया था. ऐसी आकृतियां केवल अजमेर शरीफ के बुलंद दरवाजे पर ही नहीं आसपास की कई अहम इमारतों पर भी हैं. पुराने हिंदू-जैन मंदिरों जैसे चिह्न दिख रहे हैं. दरगाह से करीब एक किलोमीटर दूर ‘ढाई दिन के झोंपड़े’ की जालियों पर स्वास्तिक के निशान दिखे. ऐसे ही चिह्नों को आधार बनाकर हिंदू पक्ष अपनी दलीलों को मजबूती दे रहा है. वहीं यहां पहुंच रहे जायरीन इसे राजनीतिक बता रहे हैं.

ढाई दिन के झोपड़े में आज भी दिख रहे स्वास्तिक के निशान

अजमेर दरगाह में मंदिर होने की बात हरविलाश सारदा ने जब 1911 में अपनी किताबा में लिखी थी तो तब उन्होंने दरगाह से सटे ढाई दिन के झोपड़े को भी हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया बताया था. दरगाह में विवाद भले ही नया हो लेकर एएसआई के अंतर्गत आने वाले ढाई दिन के झोपड़े में स्वास्तिक के निशान आज भी दिखाई देते हैं. पिछले दिनों कई बार हिंदू और जैन संत यहां आकर यहां पर जबरन नमाज पढ़ने का विरोध जता चुके हैं. गर्भगृह और बाहर की दिवारों के खंबे साफ साफ हिंदू-जैन मंदिर शैली में देखे जा सकते हैं. हालांकि स्वास्तिक के निशान वाली खिड़कियों को एएसआई की मौजूदगी में तोड़ा जा रहा है. एएसआई के एक-दो कर्मचारी यहां की भारी भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं और सूचना पट पर लिखे चेतावनी को किनारे ढंक दिया गया है. जिसकी कोई परवाह नहीं करता है.

कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था ढाई दिन का झोपड़ा

ढाई दिन के झोपड़े को ख़्वाजा साहब के साथ आए मुहम्मद गौरी के सेनापति और गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. ऐबक गौरी के वापस लौटने के बाद दिल्ली का शासक अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को बनाया था, जिसने भारत में पहले मुस्लिम शासन गुलाम वंश की स्थापना की थी. कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के साथ ही 1236 में हो गई थी. इसके बाद मोहम्मद गौरी का प्रिय सैनिक और कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक बेटे को मारकर दिल्ली की गद्दी पर बैठा और उसी ने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की अजमेर में दरगाह बनवाई, जिसे खिलजी वंश के गयासुद्दीन खिलजी ने पक्का करवाया और महमूद खिलजी ने बुलंद दरवाज़ा बनाया.

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दरगाह कमेटी के अलग-अलग दावे

हालांकि हिंदू मंदिरों और स्वास्तिक चिह्न को लेकर दरगाह कमेटी का अपना अलग दावा अलग दलील है. वो इन निर्माणों को हाल का बता रहे हैं. मंदिर के किसी निशाने के सबूत को पूरी तरह से खारिज कर रहे हैं. इस बारे में जब दरगाह दीवान जैनुल आबेदिन से पूछा गया तो पहले तो कहा कि स्वास्तिक हिंदुओं की निशानी नहीं, हिटलर अपने बाजू पर पहनता था. मगर जब बाकि गुंबद और खंबे मंदिरों के होने का सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बाद में ठेकेदारों ने कहीं मंदिर के मलवे से लाकर मरम्मत कर दिया होगा, इससे वो मंदिर नहीं हो जाता है. वहीं खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा कि मैं इस पर कुछ नहीं बोलूंगा. ये नया विवाद खड़ा किया जा रहा है, उसका मसला अलग है. हां, वो आठ साल से मस्जिद है.

अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने कहा कि वो संस्कृत विधालय और मंदिर था, जिसे हमलावरों ने तोड़ा है. सारे सबूत साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं. एसएसआई ने वहां मिली मूर्तियों को कमरों में बंद कर रखा है, जिसे खोलना चाहिए. एएसआई को यहां (ढाई दिन के झोपड़ा में) नमाज पढ़ने से रोकना चाहिए. लोगों ने ये नया शुरू कर दिया है.

कोर्ट में याचिका के बाद से दरगाह में मन्नत के लिए पहुंचे लोग हैरान नजर आए. कोई भी मंदिर वाली बात मानने को तैयार नहीं मिला. यहां लोगों ने ये सियासत हो रही है. कुछ भी लोग बोल दे रहे हैं. इसके कौन से पैसे लगते हैं. अजमेर में ऐसा कोई नहीं बोलता था. यहां सभी लोग भाइचारे से रहते हैं.

दरगाह कमेटी का कहना है कि वो संभल की तरह कोई ढिलाई नहीं बरतेंगे. भले ही कोर्ट ने उन्हें पार्टी नहीं बनाया है लेकिन वो कोर्ट में याचिका दायर करेंगे और मांग करेंगे कि उन्हें भी सुना जाए. गलत तरीके से एक तरफ फैसला हुआ है. दरगाह से जुड़े किसी भी व्यक्ति को पार्टी नहीं बनाए जाने से कमेटी ने ऐतराज जताया है. 

दरगाह परिसर में बनी छतरियों को लेकर भी सवाल 

तमाम विपक्षी पार्टियां भी इस दावे को लेकर सवाल उठा रही हैं. यहां तक कि दरगाह कमेटी भी ऐसी किसी याचिका को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का उल्लंघन बता रही है. साथ ही मान्यताओं के आधार पर मंदिर के दावों को पूरी तरह से खारिज कर रही है. हालांकि मस्जिद कमेटी की इन दलीलों के बीच सवाल दरगाह परिसर में बनी छतरियां, इमारत के कुछ हिस्सों को लेकर बना हुआ है, जिसका हरबिलास सारदा की किताब में किया गया है.

किताब के पेज नंबर 93 पर अजमेर शरीफ दरगाह के बुलंद दरवाजे का जिक्र है. इसमें लिखा है कि बुलंद दरवाजे के उत्तर की तरफ गेट में जो तीन मंजिला छतरी है वो किसी हिंदू इमारत के हिस्से से बनी हुई है. और छतरी की बनावट बताती है कि ये हिंदू ऑरिजिन की है और इनकी सतह पर खूबसूरत नक्काशियों को चूने और रंग पुताई करके भर दिया गया है, जिसे हटाना चाहिए. इसी आधार पर अमजेर में पुराना मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. 

अजमेर दरगाह को लेकर दायर याचिका कोर्ट में मंजूर (फाइल फोटो)

विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में दिए तीन आधार 

मंदिर वाले दावे की याचिका दायर करने वाले हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने मुख्य रूप से 3 आधार बताए हैं…याचिका में कहा गया है कि दो साल की रिसर्च और रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों के आधार पर याचिका दायर की गई है. किताब में इसका जिक्र है कि यहां ब्राह्मण दंपती रहते थे और दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे. इसके अलावा कई अन्य तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां शिव मंदिर रहा था.

दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं. कोर्ट सबूतों की निगरानी में सुनवाई करेगा, लेकिन इस बीच अजमेर शरीफ पर छिड़ा कानूनी घमासान लोगों की जुबान पर है, जिसपर 20 दिसंबर को आगे का फैसला होगा.

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