अभिनेता सैफ अली खान से जुड़ी एक खबर ने उनकी पेशानी पर फिर से बल ला दिए होंगे. खबर है कि, सैफ के पटौदी परिवार की पुश्तैनी संपत्तियां जल्द ही केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ सकती हैं. ये सभी प्रॉपर्टीज मध्यप्रदेश के भोपाल में हैं और इनकी अनुमानित कीमत 15,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इन पर लगे स्थगन आदेश को हटा लिया है. जिसके बाद अब शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत इनका अधिग्रहण केंद्र सरकार द्वारा किया जा सकता है.
पटौदी खानदान की भोपाल में ये संपत्ति कैसे बनी और उनका भोपाल से क्या रिश्ता है तो इसे जानने के लिए थोड़ा सा इतिहास में झांक लेते हैं. बात ये है कि, 1947 तक, भोपाल एक रियासत थी और नवाब हमीदुल्लाह खान इसके अंतिम नवाब थे. वे मंसूर अली खान पटौदी के नाना थे और उनकी तीन बेटियां थीं. जिनमें से आबिदा सुल्तान 1950 में पाकिस्तान चली गई थीं.
उनकी दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान भारत में ही रहीं और उन्होंने सैफ अली खान के दादा नवाब इफ्तिखार अली खान पटौदी से शादी की. इसके बाद 2019 में अदालत ने साजिदा सुल्तान को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी थी और सैफ अली खान को संपत्तियों का एक हिस्सा विरासत में मिला था. लेकिन, उनकी दादी की बड़ी बहन आबिदा सुल्ताना के पाकिस्तान जाने की वजह से उनकी प्रॉपर्टी शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत सरकार के दावे का केंद्र बन गई थी.
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कौन थीं आबिदा सुल्तान… उनकी पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है कि वह सैफ अली खान के पूर्वजों की रिश्तेदार हैं. ये भी परिचय उनकी शख्सियत पर सटीक नहीं रहेगा कि वह भोपाल रियासत की राजकुमारी थीं, उनके सदके तो कुछ और मोती-ए-हर्फ लगेंगे.

जब आबिदा ने जिन्ना को किया था फोन
बीबीसी की एक रिपोर्ट बड़ी दिलचस्प है. जिसका बयां कुछ इस तरह से है कि, भारत की आजादी और तकसीम के कुछ छह महीने बाद कायदे आजम जिन्ना को एक फोन आया. फोन भारत से था. इस तरफ तो जिन्ना थे, लेकिन उस तरफ थी भोपाल रियासत की उत्तराधिकारी आबिदा सुल्तान, उन्होंने फोन उठने के बाद अगले ही पल ये कहा कि ‘सिंहासन पर बैठने की बजाय पाकिस्तान आना चाहती हूं.’ यह सुनकर जिन्ना बहुत खुश हुए और बोले, “आख़िरकार! अब हमारे पास श्रीमती पंडित का मुक़ाबला करने के लिए कोई तो होगा.” श्रीमती पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं और उस समय संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही थीं.
उनके इकलौते बेटे, शहरयार मोहम्मद ख़ान ने तब अपनी वालिदा को याद करते हुए कहा था कि ‘जब उनकी मां पासपोर्ट लेने के लिए पाकिस्तान के दूतावास पहुंची, तो उन्हें जिन्ना की मौत की खबर मिली. वो कहते हैं, “इस कारण काफ़ी देरी हुई और अंत में वह केवल दो सूटकेसों के साथ पाकिस्तान चली गईं.”
भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान, कहने को तो एक राजकुमारी थीं, लेकिन वो राजकुमारियों के उस नफासत-नजाकत वाले अंदाज से कोसों दूर थीं, जो कपड़ों और गहनों से सजी-संवरी होती हैं. आबिदा उस दौर में प्लेन उड़ाती थीं, जब महिलाओं के लिए घर से निकलना नामुमकिन था. शिकार उनका सबसे पसंदीदा शगल रहा और सियासी मसले सुलझाना उनका हुनर.
उनके बेटे शहरयार खान पाकिस्तान में जाने-माने डिप्लोमैट रहे हैं. कई देशों में राजदूत रहने के साथ ही वह पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के चेयरमैन भी रहे हैं. शहरयार खान को पाकिस्तान में जो बड़ी इज्जत हासिल हुई है, इसमें उनका खुद का वजूद तो शामिल है ही, इसके साथ ही उनके पुरखों की कमाई शोहरत भी इसमें जुड़ी हुई जिसमें बड़ा किरदार उनकी मां आबिदा सुल्तान का है.
पदौदी खानदान की रिश्तेदार कैसे बनीं आबिदा?
दरअसल, शहरयार खान का जन्म भोपाल के नवाबी परिवार में 1934 में हुआ था. शहरयार की मां आबिदा और क्रिकेटर रहे नवाब मंसूर अली खान पटौदी की मां साजिदा बेगम सगी बहन थीं. इस रिश्ते के चलते शहरयार शर्मिला टैगोर के देवर, सैफ अली खान के चाचा लगते हैं.
साल 1926 में भोपाल रियासत के आखिरी नवाब बने हमीदुल्लाह. उनके कोई बेटा तो हुआ नहीं, लेकिन तीन बेटियां थीं. बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान, मंझली साजिदा सुल्तान और छोटी राबिया सुल्तान. हमीदुल्लाह ने अपने बाद रियासत की शासिका मंझली बेटी साजिदा को बनाया. हालांकि उन्हें यह जिम्मेदारी आबिदा को ही देनी थी, लेकिन आबिदा शादी करके पाकिस्तान जा बसीं थीं.
उन्होंने भारत आने से इनकार कर दिया. इसके बाद छोटी बेटी राबिया भी ससुराल चली गईं. साजिदा बेगम की शादी पटौदी राजघराने के नवाब इफ्तिखार अली खान के साथ हुई थी. इन दोनों के तीन बच्चे हुए. जिनमें सबसे बड़े थे मंसूर अली खान पटौदी. वह क्रिकेटर बने और शर्मिला टैगोर से शादी की. बाद में वह नवाब भी बने.

सियासत में भी आगे रहीं
आबिदा उस समय भारत की दशा-दिशा के अनुसार सियासत में भी आगे रहीं. आजादी के आंदोलन में सीधा नहीं तो वैचारिक योगदान उनका भी था. वह गोलमेज सम्मेलन में भी गईं थीं, जिसका उन्होंने अपनी एक किताब में जिक्र किया है. शहज़ादी आबिदा सुल्तान ने अपनी आत्मकथा, ‘आबिदा सुल्तान: एक इंक़िलाबी शहज़ादी की ख़ुदनविश्त’ में अपने जीवन के बारे में खूब लिखा है. इसी किताब की मानें तो वह 28 अगस्त, 1913 को भोपाल के सुल्तान पैलेस में जन्मी थीं.
पहले गोलमेज सम्मेलन में गईं थीं इंग्लैंड
एक जगह वह लिखती हैं कि ‘1932 में भारत की आजादी के लिए प्रथम गोलमेज कांफ्रेंस का आयोजन इंग्लैंड में किया गया था. मैं अपने पिता के साथ, जो अविभाजित भारत के चैंबर ऑफ प्रिंसेस के अध्यक्ष थे, इंग्लैंड की यात्रा पर गईं. जिस जहाज ‘केसर-ए-हिंद’ में हम इंग्लैंड जा रहे थे उसमें महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू और जौहर बंधु भी साथ थे.
”मैं इस बात से असमंजस में थीं कि जहां सारे वरिष्ठ नेता प्रथम श्रेणी में सफर कर रहे हैं, वहीं महात्मा गांधी तृतीय श्रेणी में क्यों सफर कर रहे हैं. इसका जवाब सरोजिनी नायडू ने दिया. सरोजिनी नायडू ने बताया- बेटा, यह तीसरी श्रेणी का सफर ब्रिटिश सरकार को सबसे महंगा पड़ रहा है ! दूसरी बात जिसने मुझे आश्चर्य में डाल रखा था वह यह थी कि इस सफर में महात्मा गांधी अपने साथ एक बकरी को भी इंग्लैंड लेकर जा रहे.”
आबिदा की शादी 18 जून 1926 को कुरवाई के नवाब सरवर अली खान से हुई थी. 1949 में उन्होंने भारत छोड़ दिया और पाकिस्तान चली गईं. आबिदा सुल्तान ने अपना आशियाना कराची में बनाया. शादी हुई थी, लेकिन रिश्ता बहुत लंबा नहीं चला. आबिदा ने बेटे शहरयार की कस्टडी ले ली. लेकिन बेटे की कस्टडी लेने का किस्सा भी दिलचस्प है. एक इंटरव्यू में उन्होंने इसका जिक्र किया, साथ ही ये उनकी किताब में भी दर्ज है.
जब कानूनी विवाद में फंसी बेटे की कस्टडी
हुआ यूं कि बेटे शहरयार की कस्टडी विवाद का विषय बन गई. तब उन्होंने क्या किया? ये बात कोई मार्च 1935 की है. आबिदा तीन घंटे की ड्राइव करके शौहर के घर पहुंची. उन्होंने एक रिवॉल्वर उनकी तरफ फेंक कर कहा कि, “मुझे गोली मारो या मैं तुम्हें मार दूंगी.” इसके बाद आखिरकार शहरयार की कस्टडी उन्हें मिल गई. आबिदा सुल्तान शुरू से ही एक बगावती शहजादी रहीं.वह एक साहसी महिला थी. वे वह सारे काम करतीं थीं जो उस दौर में दूसरी महिलाएं सोच भी नहीं सकती थीं. बचपन से ही शिकार की शौकीन थीं. उन्होंने अपनी पूरी जीवन में 73 शेरों का शिकार किया है जिसमें ज्यादातर शिकार 20 साल की आयु से पहले के है.
आबिदा सुल्तान भारत की दूसरी महिला और पहली मुस्लिम महिला पायलट थीं, जिनको प्लेन उड़ाने का लाइसेंस मिला था. उन्होंने प्लेन उड़ाना बॉम्बे फ्लाइंग क्लब और कोलकाता फ्लाइंग क्लब से सीखा. प्लेन के साथ साथ-साथ कार चलाने और दौड़ाने का भी बहुत शौक था. बचपन में उनकी दादी ने उन्हें कार सीखने के लिए प्रेरित किया. एक काली डेमलर कार सुबह आकर खड़ी होती थी जिसमें आबिदा खुद कार चलाकर अपनी दादी को उनकी पसंदीदा जगह पर ले जातीं थीं.
साल 2002 में हुआ निधन
आबिदा सुल्तान की आत्मकथा मेमोयर्स ऑफ ए प्रिंसेस नाम से मौजूद है. इसमें जिक्र है पाकिस्तान में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा मगर धीरे-धीरे स्थितियां अनुकूल हो गईं. वह पाकिस्तान की पहली महिला प्रोटोकॉल मिनिस्टर बनी 1954 में उनको पाकिस्तान की तरफ से यूनाइटेड नेशन में एंबेसडर के तौर पर भेजा और 1958 में वह पाकिस्तान की चिली और ब्राजील में राजदूत रहीं. 11 मई 2002 को कराची के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से राजकुमारी आबिदा सुल्तान का निधन हो गया.