प्रयागराज के महाकुंभ में त्रिवेणी के संगम स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का जो हुजूम उमड़ा हुआ है, वह हर-हर गंगे और हर-हर महादेव के घोष के साथ डुबकी लगा रहे हैं. स्नान के बाद जब वह बाहर निकलते हैं तो स्तुति-आचमन करते हैं और इस दौरान वह वहां घाट पर मौजूद पंडों या पुरोहित से तिलक लगवाते हैं. यह तिलक भारतीय संस्कृति की सबसे प्राचीन पहचान है.
भारतीय संस्कृति में तिलक का महत्व
तिलक धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिए से एक महत्वपूर्ण प्रतीक है. यह माथे पर चंदन, भस्म, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है. मान्यता है कि तिलक लगाने से मन की शुद्धता और एकाग्रता बढ़ती है. यह केवल साधुओं के लिए ही नहीं, बल्कि सामान्य जनमानस के लिए भी आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है. तिलक के महत्व को पद्म पुराण, स्कंद पुराण और कुछ अन्य उपनिषदों में विस्तार से शामिल किया गया है.
तिलक का महत्व
तिलक की महत्ता को ऐसे समझिए कि, पुराणों में इसे लेकर कहा गया है कि स्नान, दान, ध्यान, जप, होम, देवपूजा, पितृकर्म और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा, बिना तिलक के ये सभी प्रयोजन निरर्थक और निष्फल हैं.
‘स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च.
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना..’
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किस साधु का कैसा तिलक?
भारतीय संस्कृति में तिलक केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की पहचान, उसके संप्रदाय और उसकी आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है. विशेष रूप से साधु-संतों के संदर्भ में तिलक उनके संप्रदाय, साधना पद्धति और उनकी आध्यात्मिक धारा को सामने रखता है. इसी तरह महाकुंभ में भी जो संत समाज पहुंचा हुआ है, उनके भी मस्तक-ललाट पर अलग-अलग तरह के तिलक नजर आ रहे हैं. साधुओं को उनके तिलक से कैसे पहचाना जा सकता है और तिलक के कितने प्रकार होते हैं, यह जानना बेहद दिलचस्प है.
साधुओं के तिलक के प्रकार और उनका संप्रदाय
त्रिपुंड तिलकः यह तिलक भस्म से बनाया जाता है और माथे पर तीन समानांतर रेखाओं के रूप में होता है. इसे शिवभक्त या शैव साधु लगाते हैं. इसमें शामिल तीन रेखाएं त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) और तीन गुणों (सत्त्व, रजस, तमस) का प्रतीक हैं.
ऊर्ध्वपुंड्र तिलकः यह तिलक चंदन या गेरुए रंग से बनाया जाता है और माथे पर “U” आकार का होता है. इसे वैष्णव संप्रदाय के साधु लगाते हैं. यह भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा का प्रतीक है.
शक्तिपंथ तिलकः यह तिलक कुमकुम, सिंदूर या हल्दी से बनाया जाता है और लाल रंग का होता है. इसे शक्तिपंथ के साधु, देवी भक्त और तांत्रिक लगाते हैं. यह शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है.
रामानंदी तिलकः यह तिलक माथे पर खड़ी रेखा के साथ “ऊर्ध्वपुंड्र” जैसा होता है, जिसमें बीच में लाल बिंदी होती है. यह रामानंद संप्रदाय के साधुओं द्वारा लगाया जाता है. यह रामभक्ति और वैष्णव परंपरा का प्रतीक है. यह भी वैष्णव परंपरा का ही एक तिलक है.
अग्निपुत्र तिलक: यह तिलक भस्म से बना होता है और शिखरदार आकार में लगाया जाता है. इसे अघोरी साधु लगाते हैं. यह साधना, तप और आत्मा के भीतर की अग्नि का प्रतीक है. ये ऊपर की ओर उठती हुई ज्योति या लौ की तरह की आकृति होती है.
नागा साधुओं का तिलकः नागा साधु भस्म से पूरे शरीर को मलते हैं और माथे पर त्रिपुंड या अन्य शैव तिलक लगाते हैं. यह उनके वैराग्य और तपस्या का प्रतीक है.
गौड़ीय वैष्णव तिलकः यह तिलक चंदन से बनाया जाता है और “ऊर्ध्वपुंड्र” के समान होता है, लेकिन इसके बीच में तुलसी की पत्ती का प्रतीक होता है. यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के साधुओं की पहचान है.
कुंभ में तिलक लगे साधु को देखकर पहचान कैसे करें?
कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में विभिन्न संप्रदायों के साधु-संत इकट्ठा होते हैं. तिलक उनके संप्रदाय और पूजा पद्धति को पहचानने में मदद करता है. अगर साधु के माथे पर भस्म का त्रिपुंड है, तो वह शिव भक्त या शैव संप्रदाय का साधु होगा. अगर तिलक चंदन से बना है और “ऊर्ध्वपुंड्र” के रूप में है, तो वह वैष्णव संप्रदाय का साधु होगा. लाल कुमकुम या सिंदूर का तिलक देवी के भक्तों या तांत्रिकों का संकेत देता है. नागा साधु, जो कुंभ का प्रमुख आकर्षण होते हैं, भस्म से सने होते हैं और उनका तिलक उनकी तपस्या को दर्शाता है, जो कि शैव त्रिपुंड तिलक होता है.
तिलक लगाने की विधि और नियम
तिलक हमेशा शुद्धता और श्रद्धा के साथ लगाया जाता है. तिलक लगाने से पहले साधु स्नान और ध्यान करते हैं. हर तिलक के साथ एक मंत्र या भजन का उच्चारण किया जाता है.
‘कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभं, नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कंकणम्.’
यह श्लोक श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिसमें उनकी महिमा का वर्णन किया गया है और तिलक के साथ उनके स्वरूप की व्याख्या की गई है.
इसमें कहा गया है कि मस्तक के पटल पर कस्तूरी तिलक है. हृदय पर कौस्तुभ मणि धारण किए हैं. नाक में सुंदर मोती है. कलाई में कंगन और, हाथ में बांसुरी सुशोभित है. आप इस भक्त को भी इन्हीं आभूषणों की तरह स्वयं में धारण करें. हे श्रीकृष्ण, तिलक लगाकर मुझे स्वीकार करें.
तिलक लगाने के क्या हैं नियम?
शास्त्रों के अनुसार तिलक लगाने में उंगली का विशेष महत्व होता है. जो व्यक्ति मोक्ष की इच्छा रखते हैं उन्हें अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए. धन की कामना है तो मध्यमा उंगली से तिलक लगाएं. सुख-शांति की प्राप्ति के लिए अनामिका उंगली से तिलक करें. देवताओं को मध्यमा उंगली से तिलक लगाना चाहिए. शत्रु पर विजय की कामना है तो तर्जनी उंगली से ललाट पर तिलक लगाना चाहिए. हमेशा तिलक को अनामिका यानि छोटी उंगली के बगल वाली उंगली से लगानी चाहिए. दूसरे के माथे पर तिलक लगाते समय व्यक्ति को अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए. यही सही विधि है.
तिलक और आध्यात्मिक ऊर्जा
तिलक न केवल साधुओं की पहचान है, बल्कि यह उनके साधना मार्ग का भी प्रतीक है. तिलक माथे के आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है, जिसे शरीर का ऊर्जा केंद्र माना जाता है. यह साधु के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और उसे ईश्वर से जोड़ता है. तिलक साधुओं की पहचान और उनके आध्यात्मिक संप्रदाय को समझने का एक मुख्य जरिया है. यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. कुंभ जैसे आयोजनों में तिलक से न केवल साधु की पहचान होती है, बल्कि यह उनके ज्ञान, तप और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है.