प्रशांत किशोर छात्र आंदोलन में हाथ सेंकने गये थे, और झुलस गये | Opinion – prashant kishor bpsc student politics backfires on jan suraaj byelection performance opnm1

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बेशक प्रशांत किशोर ने पटना की सड़कों पर आंदोलन कर रहे युवाओं के साथ जुड़ने में अच्छा अवसर देखा होगा. लगा होगा सड़क पर उतरकर सपोर्ट कर देने से बेरोजगारी से परेशान युवाओं का साथ मिल जाएगा तो चुनावी वैतरणी पार करने में मुश्किलें थोड़ी कम हो जाएंगी, लेकिन लगता है दांव उल्टा पड़ गया है. 

प्रशांत किशोर पर आंदोलनरत अभ्यर्थियों को भड़काने का आरोप लगा है, और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने युवाओं के आंदोलन को हाईजैक करने का आरोप लगाया है. 

जन सुराज नेता प्रशांत किशोर जब आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे तो युवाओं से तीखी बहस भी हुई. और, ये भी इल्जाम है कि जब पुलिस का सख्त रुख देखा तो वाटर कैनन और लाठीचार्ज से पहले ही खिसक लिए. सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी वायरल है, जिसमें प्रशांत किशोर के मुंह से सुनने को मिल रहा है, ‘… घर जाना है’. 

हालांकि, भूल सुधार करते हुए अगले दिन प्रशांत किशोर पुलिस कार्रवाई में घायल छात्रों से मिलने अस्पताल भी पहुंचे – और सफाई भी दी. 

प्रशांत किशोर छात्रों के निशाने पर क्यों हैं?

70वीं बीपीएससी प्रारंभिक परीक्षा को रद्द करने की मांग को लेकर बिहार के युवा 18 दिसंबर से ही विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. 29 दिसंबर को आंदोलन में प्रशांत किशोर की एंट्री के बाद बवाल बढ़ गया है. लेफ्ट के छात्र संगठन आइसा ने पुलिस एक्शन के विरोध में 30 दिसंबर को बिहार बंद की कॉल दी है. 

आंदोलनकारी युवा परीक्षा रद्द कर उसे दोबारा कराये जाने की मांग कर रहे हैं, और प्रशांत किशोर भी इस बात का सपोर्ट कर रहे हैं. बताते हैं कि प्रशांत किशोर के कहने पर गांधी मैदान से मुख्यमंत्री आवास तक आक्रोश मार्च निकाला गया था. जेपी गोलंबर के पास पहुंचने के बाद आंदोलनकारियों ने बैरिकेडिंग तोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास किया. पुलिस और प्रशासन की तरफ से उनको समझाने की कोशिशें हुई, लेकिन वे नहीं माने. पुलिस का भी कहना है प्रशांत किशोर के कहने पर ही आंदोलन ने नया मोड़ लिया. 

बताते हैं कि आंदोलन स्थल पर पहुंचे प्रशांत किशोर ने प्रदर्शनकारियों को भरोसा दिलाया था कि अगर पुलिस एक्शन हुआ तो पहली लाठी उन पर पहली ही चलेगी.

मौके पर प्रशांत किशोर और आंदोलनाकारियों के बीच तीखी नोक-झोंक भी हुई. बहस कर रहे युवाओं से प्रशांत किशोर ने गुस्से में कहा, ‘ज्यादा होशियार बन रहे हो… यहां आंदोलन में रहना है, तो रहो… नहीं तो चले जाओ…’ 

बात नहीं सुनने पर प्रशांत किशोर ने कहा, तमीज से बात करो, नहीं तो चुप रहो. उसके बाद प्रशांत किशोर ने यहां तक बोल दिया, कंबल मांगे हो मुझसे… और बहस करते हो. 

आंदोलन कर रहे युवाओं ने प्रशांत किशोर के दावे को उसी वक्त खारिज कर दिया. बोले, कोई कंबल आपसे नहीं मांगा है. उनका कहना था कि वे लोग चंदा करके कंबल मंगवाये हैं.  

अगर प्रंशात किशोर ने कंबल देने की बात कही, तो मतलब साफ है. प्रशांत किशोर आंदोलन की आग में घी डालने का काम कर रहे थे. लेकिन चीजें हाथ से निकल गईं, और आंदोलन की आग में हाथ भी झुलस गया. 

प्रशासन की ओर से समझाने की भी काफी कोशिश की गई, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था. बाद में पुलिस ने वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, और लाठीचार्ज भी किया गया. हालांकि, पुलिस लाठीचार्ज से इनकार कर रही है. 

पटना सेंट्रल एसपी स्वीटी सहरावत कहती हैं, लाठीचार्ज नहीं हुआ… हमने उनसे कहा कि वे अपनी मांगें हमारे सामने रखें, हम बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन वे अड़े रहे… प्रशासन के साथ धक्का-मुक्की की गई. अंत में हमें मजबूरन वाटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा. उनकी तरफ से कोई प्रतिनिधि मिलने नहीं आया… प्रशांत किशोर जो पूरे मार्च को लीड कर रहे थे, वे छात्रों को जेपी गोलंबर पर जाम करके निकल गए थे.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि कुछ लोगों ने आंदोलन को गुमराह करने की कोशिश की. सरकार और बीजेपी की बी टीम को आंदोलन बिगाड़ने के लिए खड़ा किया गया… जब छात्रों की पिटाई हो रही थी तो जो लोग कह रहे थे कि हम सबसे आगे खड़े रहेंगे, वो सबसे पहला भाग खड़े हुए. 

पुलिस ने अनाधिकृत रूप से भीड़ इकट्ठा करने के लिए 600 से ज्यादा लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. एफआईआर में प्रशांत किशोर, उनके दो बाउंसर, जन सुराज पार्टी के अध्यक्ष मनोज भारती, कोचिंग संचालक आर मिश्रा और सुजीत कुमार के नाम शामिल हैं. 

छात्र संघ चुनाव में तो सफल रहे हैं

प्रशांत किशोर जब जेडीयू के उपाध्यक्ष बने थे, तब नीतीश कुमार ने उनको युवा जेडीयू को खड़ा करने का जिम्मा दिया था. बतौर जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर अपना पहला असाइनमेंट सफलतापूर्वक पूरा किया था, लेकिन अभी कैसे चूक गये ये देखना होगा. 

पटना यूनिवर्सिटी के 2018 के छात्र संघ भी काफी बवाल हुआ था. मौजूदा आंदोलन और तब के असाइनमेंट में एक फर्क है. वो नीतीश कुमार की तरफ से था, ये नीतीश कुमार के खिलाफ है. 

छात्र संघ चुनाव के दौरानप्रशांत किशोर जब पटना विश्वविद्यालय के कुलपति से मिलने पहुंचे, तो छात्रों को इसकी भनक लग गई. और, देखते ही देखते छात्र नेताओं ने कुलपति आवास को घेर लिया. प्रशांत किशोर घंटों कुलपति आवास में घिरे रहे. बाद में पुलिस ने लाठियों के बल पर प्रशांत किशोर को काफी मुश्किल से सुरक्षित निकाला था.

लेकिन प्रशांत किशोर की मौजूदगी ने छात्र राजनीति को बिहार में सत्ताधारी जेडीयू के पक्ष में मोड़ दिया था. प्रशांत किशोर की टीम जेडीयू के छात्र पैनल के लिए काम कर रही थी – और उसी का नतीजा रहा कि पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ में पहली बार छात्र-जेडीयू मोहित प्रकाश अध्यक्ष और सत्यम कुमार कोषाध्यक्ष पद का चुनाव जीत गये. 

प्रशांत किशोर कहां चूक गए?

बिहार में चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जन सुराज का काम तो ठीक ठाक ही चल रहा था, आखिर प्रशांत किशोर कहां चूक गए? 

पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में प्रशांत किशोर ने अपनी उसी काबिलियत का नमूना दिखाया था, जिसमें वो ज्यादातर सफल रहे हैं. चाहे वो 2014 का आम चुनाव रहा हो, या 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव या फिर बाद के चुनाव कैंपेन – लेकिन सड़क की राजनीति काफी मुश्किल होती है. 

कहने को तो प्रशांत किशोर जन सुराज की मुहिम भी सड़क पर ही चलाते आ रहे हैं, लेकिन वो लोगों के बीच जाकर अपनी बात कह रहे हैं. जैसे तैसे लोगों से संपर्क साध रहे हैं, और अपना एजेंडा समझाने की कोशिश कर रहे हैं. 

जन सुराज के जरिये प्रशांत किशोर पहली बार फ्रंट पर आये हैं. पहले वो बड़े नेताओं के बूते कैंपेन चलाते थे, और सफल भी होते थे. कंधा तो वो अब भी दूसरों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन पुलिस की लाठी चलने की आशंका भांप कर भाग भी जाते हैं. ऐसा कई आंदोलनों में होता है, लेकिन सभी में नहीं होता. 

सड़क से राजनीति शुरू करने पर नेता बनने से पहले पुलिस की लाठियां खानी पड़ती हैं. जेल भी जाना पड़ता है. प्रशांत किशोर की राजनीति की अरविंद केजरीवाल से तुलना की जाती है, और उनको भी जेल की हवा खानी पड़ी है. वैसे वो तो भ्रष्टाचार के आरोप में भी जेल की हवा खा चुके हैं. 

चुनाव कैंपेन चलाने और सड़क पर उतर कर राजनीति करने में बहुत बड़ा फर्क होता है. प्रशांत किशोर को इस बात की अब बेहतर हो गई होगी. राजनीतिक विरोधियों की बातों को नजरअंदाज भी कर दें, तो बीपीएससी अभ्यर्थियों का गुस्सा अच्छे इशारे नहीं कर रहा है. 

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