अजमेर दरगाह को लेकर हिंदू संगठनों के दावों ने नए विवाद को जन्म दे दिया है. हिंदुओं का दावा है कि अजमेर में ख्वाजा के दर में शिव मंदिर था. हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर याचिका को अजमेर सिविल कोर्ट ने बुधवार को स्वीकार कर लिया. मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को तय की गई है. अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका के बाद बयानों की बाढ़ सी आ गई है.
दरअसल, सिविल कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी ASI को नोटिस भेजा है. इस याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला देते हुए दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा होने का दावा किया गया है. साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात भी कही जा रही है. अब हिंदू संगठनों के दावे के बाद से इस पर सियासत तेज हो गई है.
‘कई प्रधानमंत्रियों ने चादर भिजवाई हैं’
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इसको लेकर AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाते बीजेपी पर निशाना साधा है और इसके पीछे बीजेपी को बताया है. आजतक से खास बातचीत में ओवैसी ने कहा कि ख्वाजा अजमेरी की दरगाह 800 साल से है. दरगाह शरीफ पर कभी भी ऐसा क्लेम नहीं हुआ लेकिन आज ये लोग ऐसा क्लेम कर रहे हैं कि दरगाह नहीं है. दरगाह शरीफ में तो हर साल नरेंद्र मोदी चादर चढ़ाते हैं, भिजवाते हैं. कई प्रधानमंत्रियों ने चादर भिजवाई हैं. हमारे पड़ोसी मुल्क डिप्लोमेसी के नाम पर यहां डेलिगेशन भी भेजते हैं.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि मकसद एक ही है कि जितनी मुसलमानों की मस्जिद और दरगाहें हैं, वहां पर बीजेपी-RSS के स्पॉन्सर्ड लोग हैं, इनको इस्तेमाल करके माहौल पैदा किया जा रहा है. ये लोग लॉ एंड ऑर्डर का स्थिति पैदा करना चाह रहे हैं. जिस किताब का कोर्ट में जिक्र किया गया है, उसमें हिसाब से सबूत कहां है? मैं कल जाकर अर्जी डाल दूं कि प्रधानमंत्री के घर के नीचे मस्जिद थी तो क्या खुदाई का ऑर्डर दे देंगे? कल को बोल दूंगा संसद के नीचे कुछ और है तो क्या खुदाई का ऑर्डर मिल जाएगा? आप देश को कहां लेकर जाना चाहते हैं? इस तरह से कोई भी गलत बातें लिख देगा?
‘आज 15 दरगाह-मस्जिद पर केस दायर हो चुका है’
ओवैसी ने कहा कि जिस दिन बाबरी मस्जिद-राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, उस दिन में आजतक के शो में आया था और कहा था कि इस फैसले से कई मामले खुल जाएंगे. आज 15 ऐसी दरगाह और मस्जिद पर केस दायर हो चुका है. मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में 1991 वर्शिप एक्ट पर दायर केस पर जवाब ही दायर नहीं कर रही है. इस एक्ट का गलत इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है. उदाहरण के लिए संभल की मस्जिद ले लेते हैं. वहां के याचिकाकर्ता ने कहा कि हमें राइट ऑफ वे चाहिए, लेकिन कोर्ट ने सर्वे का आदेश दे दिया.
उन्होंने कहा कि ये सब देश के हित में नहीं हो रहा है. देश को बदनाम कर रहे हैं. लोगों के दिलों से अदालत पर विश्वास कम करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे देश कमजोर होगा. इसका नुकसान सबको उठाना पड़ेगा. हम नरेंद्र मोदी सरकार से मांग कर रहे हैं कि इन लोगों को रोकें क्योंकि पीएम की बात लोग सुनते हैं.
अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर किताब में कही गई ये बात
याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब – अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला दिया गया. किताब में दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा होने का दावा किया गया है. साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात कही गई है.
याचिकाकर्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश हरविलास शारदा की पुस्तक का हवाला दिया, जिसमें बताया गया है कि दरगाह के निर्माण में हिंदू मंदिर के मलबे का इस्तेमाल किया गया था. पुस्तक में दरगाह के भीतर एक तहखाने का विवरण दिया गया है, जिसमें कथित तौर पर एक शिव लिंग होने का दावा है. पुस्तक में दरगाह की संरचना में जैन मंदिर के अवशेषों का भी उल्लेख किया गया है और इसके 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे के तत्वों का भी इसमें वर्णन है.
कहा गया है कि इस शिवलिंग की पारंपरिक रूप से एक ब्राह्मण परिवार पूजा करता है, और दरगाह के 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे की संरचना में जैन मंदिर के अवशेषों की उपस्थिति का संकेत देता है. याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से दरगाह का सर्वेक्षण करने का भी अनुरोध किया गया है, जिसमें उस क्षेत्र में फिर से पूजा-अर्चना की जा सके जहां शिव लिंग बताया जाता है.
अजमेर के बारे में रोचक तथ्य यह भी है कि यहां पृथ्वीराज चौहान ने भी शासन किया था. जज हरविलास ने बताया कि अजमेर महायोद्धा पृथ्वीराज चौहान के वंशजो ने ही यह मंदिर बनाया था.
क्या है याचिकाकर्ता का दावा
वादी विष्णु गुप्ता के अधिवक्ता योगेश सिरोजा ने बताया कि वाद पर दीवानी मामलों के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई. सिरोजा ने कहा, ‘दरगाह में एक शिव मंदिर होना बताया जा रहा है. उसमें पहले पूजा पाठ होता था… पूजा पाठ दोबारा शुरू करवाने के लिये वाद सितंबर 2024 में दायर किया गया. अदालत ने वाद स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए हैं.’
उन्होंने बताया कि इस संबंध में अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कार्यालय-नयी दिल्ली को समन जारी हुए हैं. वादी विष्णु गुप्ता ने कहा, ‘‘हमारी मांग थी कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाये और दरगाह का किसी प्रकार का पंजीकरण है तो उसको रद्द किया जाए. उसका सर्वेक्षण एएसआई के माध्यम से किया जाए और वहां पर हिंदुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार दिया जाए.’’
दरगाह के संचालकों ने जाहिर की चिंता
अदालत की कार्रवाई के जवाब में, दरगाह की देखभाल करने वालों की देखरेख करने वाली अंजुमन समिति के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने ऐसे विवादों के निहितार्थों के बारे में चिंता जाहिर की. उन्होंने 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला दिया.
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. चिश्ती ने दरगाह के 800 से अधिक वर्षों के लंबे इतिहास को रेखांकित किया और दरगाह पर एएसआई के अधिकार क्षेत्र को विवादित बताया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है.