ईरान और इजरायल एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं जो कि अब जंग के मुहाने पर खड़े हैं. इसकी वजह है ईरान का इजरायल पर 180 से ज्यादा मिसाइल अटैक, ये हमला पिछले मंगलवार की रात को हुआ था, जब इजरायल के आसमान में ईरानी मिसाइलों की भारी बौछार देखी गई. हालांकि ये कोई रहस्य नहीं है कि ईरान-इजरायल का कट्टर दुश्मन है, लेकिन कई लोगों को यह जानकर हैरानी हो सकती है कि कभी ऐसा भी समय था जब दोनों देशों के बीच बहुत करीबी संबंध थे. लेकिन आज हालात पूरी तरह से अलहदा हैं.
ईरान और इजरायल के बीच संबंध कैसे खराब हुए, इसे समझने के लिए ईरान-इजरायल संबंधों के इतिहास को खंगालना जरूरी है, ताकि ये पता लग सके कि दोस्ती आखिर दुश्मनी में कैसे बदल गई.
1948 से पहले तक इजरायल था ही नहीं. ये पूरा फिलिस्तीन ही था, जिसपर कभी ऑटोमन साम्राज्य का राज था. 14 मई 1948 को इजरायल अस्तित्व में आया. संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में फिलिस्तीन के बंटवारे का एक प्रस्ताव रखा. ये प्रस्ताव फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में बांटने का था. जबकि, येरूशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाने का प्रस्ताव रखा गया था. यहूदी नेताओं ने इस प्रस्ताव को मान लिया, लेकिन अरब नेताओं को ये मंजूर नहीं थी. ईरान उन 13 देशों में शामिल था, जिन्होंने इसके खिलाफ़ मतदान किया था. ईरान ने अपने रुख को 1949 में फिर से दोहराया, जब ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में सदस्य के रूप में इज़रायल के प्रवेश के खिलाफ़ मतदान किया.
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शुरुआती विरोध के बावजूद जियोपॉलिटिकल और रणनीतिक हितों ने जल्द ही ईरान और इज़रायल के बीच एक सीक्रेट संबंध को जन्म दिया. हालाकि सार्वजनिक रूप से ईरान ने इज़रायल को मान्यता देने से इनकार कर दिया. लेकिन साल 1950 आते-आते ईरान, तुर्की के बाद इज़रायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम-बहुल देश बन गया.
शाह शासन के वक्त दोस्त थे ईरान-इज़राइल
1953 में तख्तापलट के बाद ईरान में शाह के शासन की वापसी हुई. इसने ईरान-इज़रायल संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया. मोहम्मद रजा शाह पहलवी की सत्ता में वापसी के साथ ईरान और इज़रायल ने एक घनिष्ठ और बहुआयामी गठबंधन बनाना शुरू कर दिया. ईरान ने आधिकारिक तौर पर 1950 में इजरायल को मान्यता दी थी, उस समय ईरान में पश्चिम एशिया में सबसे बड़ी यहूदी आबादी रहती थी. शाह पहलवी शासन ने इजरायल को एक सहयोगी के रूप में देखा. पारस्परिक लाभ से प्रेरित इस दोस्ती ने ईरान और इजरायल के बीच आर्थिक, सैन्य और खुफिया सहयोग को बढ़ावा दिया. उन्होंने कम्युनिस्ट USSR को पश्चिम एशिया से बाहर रखने के साझा हितों के आधार पर एक करीबी रिश्ता भी डवलप किया, क्योंकि दोनों पूंजीवादी अमेरिका द्वारा समर्थित थे. तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन के नेतृत्व में ईरान को एक दोस्ताना जगह मिली. सऊदी अरब के दैनिक अरब न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक नवगठित यहूदी देश इजरायल ने अपने तेल का 40% ईरान से हासिल किया और इसके बदले में हथियारों, तकनीकी और एग्रीकल्चर से जुड़ी चीजों का व्यापार किया.
कभी ईरान से इजरायल पहुंचता था तेल
ईरान से तेल इजरायल की इंडस्ट्री और सैन्य जरूरतों के लिए काफी जरूरी था, जबकि इजरायल के दुश्मन अरब देशों ने तेल पर प्रतिबंध लगा रखा था. 1968 में स्थापित ईलाट-अश्केलोन पाइपलाइन कंपनी एक महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना थी, जिसने मिस्र के अधीन स्वेज नहर को दरकिनार करते हुए ईरानी तेल को इजरायल तक पहुंचाया. इसके बदले में इजरायल ने 1980 के दशक में इराक के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए ईरान को आधुनिक सैन्य उपकरण और हथियार प्रदान किए. टाइम्स ऑफ इजरायल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार ईरानियों ने इजरायल से हाईटेक मिसाइल सिस्टम, एम-40 एंटीटैंक गन, उजी सबमशीन गन और विमान इंजन भी इंपोर्ट किए. ईरान के शाह ने अपने पड़ोसियों के खिलाफ सैन्य सफलता के कारण इजरायल की तारीफ भी की, फिर प्रोजेक्ट फ्लावर आया, जो हाईटेक मिसाइल सिस्टम को संयुक्त रूप से डवलप करने के लिए इजरायल-ईरानी वेंचर था. इतना ही नहीं, पहलवी ने ईरान की सीक्रेट पुलिस SAVAK 1957 में CIA और मोसाद की सहायता से बनाई थी.
रिश्तों में ऐसे आई गिरावट
1979 में ईरानी क्रांति ने ईरान-इजरायल संबंधों में एक बड़ा बदलाव किया. पहलवी राजवंश के पतन और अयातुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना ने ईरान की विदेश नीति और वर्ल्ड व्यू को पूरी तरह से उलट दिया. हालांकि शुरुआती साल में ईरान और इज़रायल ने अपने संबंधों को सामान्य बनाए रखने पर जोर दिया. इज़रायल और ईरान दोनों ने सद्दाम हुसैन की इराकी सरकार का मुकाबला करना अपने हित में देखा. ब्रिटिश अख़बार द ऑब्ज़र्वर के अनुसार 1980-88 के ईरान-इराक युद्ध के दौरान इजराइल ने ईराना को सालाना 500 मिलियन डॉलर के हथियार बेचे थे. टाइम पत्रिका के मुताबिक इन सौदों को सुविधाजनक बनाने के लिए इज़रायल ने स्विस बैंक में खाते भी खोले. येरुशलम में इज़रायली अधिकारियों को उम्मीद थी कि हथियारों की सप्लाई ईरानी सेना को खुश रखेगी और अयातुल्ला के शासन को उखाड़ फेंकेगी. ईरान-इराक युद्ध के बाद भी कुछ समय तक दोनों देशों के बीच सीक्रेट रिलेशन जारी रहे, लेकिन बाद में संबंधों में गिरावट आने वाली थी.
ईरान ने इजरायल को बताया था छोटा शैतान
ईरान, जो कि एक धर्मशासित देश है वह इज़रायल को फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा करने वाला मानता है. जब इजरायल के साथ रिश्तों में कड़वाहट घुली तो ईरान ने इजरायल को “छोटा शैतान” तक कहा था, जबकि अमेरिका को “बड़ा शैतान” कहा. शिया ईरान मिडिल ईस्ट का पावर सेंटर बनना चाहता था और उसने सुन्नी इस्लाम के मक्का सऊदी अरब को चुनौती देना शुरू कर दिया. उसने इज़रायल और अमेरिका दोनों को क्षेत्रीय मामलों में हस्तक्षेप करने वाला भी माना.
… ईरान ने तोड़े इज़रायल से संबंध
इस घटना के बाद ईरानी सरकार ने इज़रायल के साथ सभी राजनयिक संबंध तोड़ दिए और ईरान ने फिलिस्तीनी और अन्य इज़रायल विरोधी आंदोलनों का सक्रिय रूप से समर्थन करना शुरू कर दिया. इस अवधि में दोनों देशों के बीच संबंधों में उल्लेखनीय गिरावट हुई. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी अवधि में ईरान ने शिया लेबनानी तत्वों को समर्थन देना शुरू किया, जिसने बाद में हिज्बुल्लाह का रूप ले लिया
गल्फ वॉर के बाद बढ़ी चौतरफा दुश्मनी
1991 में गल्फ वॉर की समाप्ति ने ईरान और इज़रायल के बीच खुली दुश्मनी के युग की शुरुआत की. सोवियत संघ के पतन और एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका के उदय ने इस क्षेत्र को और अधिक पोलराइज्ड कर दिया. वहीं, ईरान और इज़रायल ने खुद को लगभग हर प्रमुख जियो-पॉलिटिकल विमर्श में एक दूसरे के खिलाफ पाया. 1980 के दशक में शुरू हुआ ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम 1990 के दशक से विवाद का केंद्र बन गया. इज़राइल ने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ मिलकर इस बात पर जोर दिया कि ईरान अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को त्याग दे, क्योंकि वे क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं. अमेरिका और इज़रायल के लिए, ईरान अब एक कट्टरपंथी और निरंकुश अयातुल्ला द्वारा शासित था. रुओल्लाह खुमैनी के बाद यह उनके उत्तराधिकारी अयातुल्ला अली खामेनेई थे, जिन्हें ये भयंकर युद्ध विरासत में मिला था. खुली दुश्मनी के कारण कई टकराव हुए, जिनमें सीक्रेट ऑपरेशन और एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की सार्वजनिक धमकियां शामिल हैं.
इज़रायल और ईरान ने एक-दूसरे पर शुरू किए प्रॉक्सी वॉर
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच आग काफी भड़क उठी है, जिसके चलते मिडिल ईस्ट के एक बड़े हिस्से पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. इज़रायल और ईरान ने एक-दूसरे पर मौखिक कटाक्ष और प्रॉक्सी वॉर शुरू कर दिए हैं. जहां ईरान ने इज़रायल के पड़ोस में कम से कम आधा दर्जन प्रॉक्सी तैयार किए, जबकि यहूदी देश इजरायल ने अत्याधुनिक तकनीक और खुफिया जानकारी का इस्तेमाल किया है. सीरियाई सिविल वॉर उनके प्रॉक्सी वॉर के लिए एक युद्ध का मैदान बन गया, जिसमें ईरान ने सीरियाई सरकार का समर्थन किया और इज़रायल ने सीरिया में ईरानी ठिकानों के खिलाफ हवाई हमले किए. साल 2011 में ईरान समर्थित हिज्बुल्लाह के हस्तक्षेप ने बशा अल-असद के शासन को बचाया.
ईरान ने इजरायल पर दागीं 180 से ज्यादा मिसाइलें
हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद ईरान ने इजरायल पर 180 से ज्यादा मिसाइल दागी हैं. इसके बाद तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है. इजरायल ने इस हमले के लिए ईरान के अंजाम भुगतने की चेतावनी दी है. वहीं, G7 देशों ने एक आपात बैठक की है. इसमें अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने की बात कही है. लेकिन जिस तरह से तनाव बढ़ रहा है, उससे एक बात तो तय है कि ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष अभी सुलझने से काफी दूर है.