अयोध्या की हार के बाद बीजेपी मिल्कीपुर को ‘बदलापुर’ बना देने को आतुर | Opinion – milkipur bypoll becoming revenge fight for bjp and boosting Isreal IRAN war debate on social media sets hindutva agenda narrative opnm1

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अयोध्या में बीजेपी की हार के बाद मिल्कीपुर का मुकाबला काफी कड़ा होता जा रहा है. असल में, फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद की खाली की हुई सीट पर उप चुनाव होना है, लेकिन मतदान की तारीख अभी नहीं आई है. 

मिल्कीपुर को लेकर बीजेपी की तरफ से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव ने कमान अपने हाथ में ले रखी है. 

हालत ये है कि अभी तक न तो बीजेपी ने अपने पत्ते खोले हैं, न ही समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार फाइनल किया है. संभावितों के नाम हवा में ही तैर रहे हैं. 

बीजेपी के संभावित उम्मीदवारों के नाम तो कयासों की लिस्ट से आगे नहीं बढ़ सकी है. समाजवादी पार्टी से अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद का टिकट पक्का माना जा रहा था, लेकिन अब उस पर संदेह जताया जा रहा है. 

अजीत प्रसाद के खिलाफ अपहरण, मारपीट करने और धमकाने को लेकर एफआईआर हो गई है. FIR के बाद अजीत प्रसाद विवादों में आ गये. बीजेपी हमलावर हो गई, तो समाजवादी पार्टी की तरफ से बचाव में सफाई दी जाने लगी है. 

अब माना जा रहा है कि अजीत प्रसाद की जगह अखिलेश यादव किसी और को भी मैदान में उतार सकते हैं. मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए अभी तक सिर्फ बीएसपी और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवारों के ही नाम सामने आये हैं. 

मिल्कीपुर जीत कर बीजेपी फैजाबाद लोकसभा सीट की हार का हिसाब पूरा करना चाहती है. जिस तरह हरियाणा से लेकर बिहार तक जातिवाद की राजनीति हावी होती जा रही है, बीजेपी के हिंदुत्व का एजेंडा कमजोर माना जाने लगा था – लेकिन इजरायल-ईरान युद्ध को लेकर जिस तरह से सोशल मीडिया पर बहस चल रही है, लगता है बीजेपी मिल्कीपुर को बदलापुर बना भी सकती है.

इजरायल-ईरान जंग के बीच सोशल मीडिया पर बहस

सोशल मीडिया पर बहस तो चौबीस घंटे चलती रहती है. हर कोई अपनी अपनी शिफ्ट में मोर्चा संभाले रहता है. शायद ही कोई मसला ऐसा हो, जिस पर दोनो तरफ से एक दूसरे के खिलाफ हमले न होते हों. 

7 अक्टूबर, 2023 को इजरायल पर हमास के हमले के बाद, बदले में गाजा पट्टी पर जो एयर स्ट्राइक हुई, उसे लेकर भी लोग आमने सामने आ गये थे. ऐसा लगा जैसे साफ साफ बंटवारा हो गया हो. एक तबका इजरायल के पक्ष में मोर्चे पर तैनात हो गया, तो दूसरा फिलीस्तीन यानी हमास की तरफ से – और ऐसी बहसें कब युद्धोन्माद में तब्दील हो जाती हैं, पता ही नहीं लगता.  

तब तो राजनीतिक दलों के बड़े बड़े नेताओं की भी राय सामने आई थी. सत्ताधारी बीजेपी के साथ तो विदेश नीति और डिप्लोमेसी का मामला जुड़ा होता है, लेकिन विपक्षी खेमे से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के भी बयान आ गये थे – ईरान के इजरायल पर हमले के बाद सोशल मीडिया पर तो बहस जारी है, लेकिन बड़े नेता खामोश से लगते हैं. एक खास वजह, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में हो रहे विधानसभा के चुनाव भी हो सकते हैं.

ऐसे में ये बहस नेताओं के बजाय उनके समर्थकों के बीच चल रही है. जैसे ही सोशल मीडिया, खासकर सोशल साइट X, पर कोई अपनी राय रख रहा है – दोनों तरफ से शब्दों की मिसाइलें फायर होने लगती हैं. 

मसलन, एक पोस्ट में लिखा जाता है कि ईरान ने इजराइल पर जवाबी हमला कर दिया है. जैसे ही फिलीस्तीन पर जुल्म से शुरू होकर लड़ाई के बड़े होते जाने का जिक्र आता है, लोग टूट पड़ते हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं कि ये सब एकतरफा चल रहा हो. लोग सवाल भी उठा रहे हैं, और जवाब भी दे रहे हैं. 

पोस्ट के कमेंट में एक यूजर याद दिलाने की कोशिश करता है कि हमास के आतंकी ने कैसे इजरायल की लड़की को किडनैप किया. रेप किया और उसे नंगा करने के बाद पैर रख कर जगह जगह घुमाया. और आखिर में गोली मार दी. 

तभी बहस में कूद पड़े एक अन्य यूजर का कहना है, इजरायल के हमले से जो लोग खुशी मना रहे थे, अब उनको इंसानियत दिखाई दे रही है. और फिर सवाल होता है, जब फिलिस्तीन के बच्चे शहीद हो रहे थे ऐसे लोग कहां थे?

सवाल के साथ वो यूजर ज्ञान देने से बाज आने की नसीहत देता है, तभी नया कमेंट लिखा जाता है – भारत में रह रहे कुछ लोगों की चिंता समझ में आती है… लेकिन इजरायल आतंकवाद का खात्मा करके ही मानेगा. 

इजरायल-ईरान जंग पर बहस से बीजेपी को कैसे फायदा

जैसे इजरायल-ईरान युद्ध को लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है, सोशल मीडिया पर बीजेपी के समर्थक और आलोचक भी आमने सामने खड़े हो गये हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे मुल्क इजरायल के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, अरब जगत के सुन्नी मुस्लिम बहुल देश लेबनान की संप्रभुता की बात जरूर करते हैं.

सोशल मीडिया जो बहस चल रही है, करीब करीब वही चाय-पान की दुकानों पर भी चल रही है – और भी जो बहस चल रही है वो हिंदुत्व के एजेंडे के नैरेटिव को नये सिरे से मजबूत बना रही है. 

जाहिर है, नये नैरेटिव का फायदा तो योगी आदित्यनाथ वाली राजनीति को मजबूती ही देता है. और उसका परीक्षण स्थल मिल्कीपुर का मैदान ही बनने जा रहा है. 

2 अक्टूबर की ही तो बात है. राजघाट पहुंच कर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के अलावा सभी लोगों ने महात्मा गांधी को अपने अपने तरीके से याद किया. प्रशांत किशोर ने तो बिहार में अपनी राजनीतिक पार्टी ही लॉन्च की है. 

गांधी जयंती के बहाने भी लोग इजरायल-ईरान युद्ध पर बहस कर रहे थे. फेसबुक पर एक पोस्ट में ‘व्यंग्य और कटाक्ष’ के डिस्क्लेमर के साथ लिखा है, आज सच में महात्मा गांधी जी की कमी खल रही है… जहां दुनिया के कई देश इजरायल के समर्थन में खड़े हैं. कोई तो हो जो ईरान जैसे आतंकवाद समर्थक देश का सपोर्ट करने वाला होना चाहिये… बापू ने ऐसे ही मौके पर पाकिस्तान के लिए भी भूख हड़ताल की थी.

सोशल मीडिया की बहस देखकर तो नहीं लगता कि कास्ट पॉलिटिक्स के हावी होने के बावजूद बीजेपी के हिंदुत्व का एजेंडा बेअसर होने लगा है.

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